

पीपल्स यूनिवर्सिटी के फार्मेसी बिभाग के स्टूडेंट्स और स्टाफ़ ने 12.05.2025 बुद्ध पूर्णिमा,पूरी श्रद्धा के साथ इसमें हिस्सा लिया यह कार्यक्रम “एक दान चिड़िया के नाम” थीम पर आयोजित किया गया था, जिसका मकसद प्रकृति, खासकर पक्षियों और पर्यावरण के प्रति दया, करुणा और देखभाल का संदेश फैलाना था। बुद्ध पूर्णिमा, जो भगवान गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण की याद में मनाई जाती है, शांति, सहानुभूति और सद्भाव पर उनकी शाश्वत शिक्षाओं की याद दिलाती है। SOP&R में यह उत्सव इन मूल्यों को दर्शाता था, और छात्रों, फैकल्टी और कर्मचारियों को अपने दैनिक जीवन में करुणा अपनाने और प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व को बढ़ावा देने के लिए प्रोत्साहित करता था।
बुद्ध पूर्णिमा भारतीय ज्ञान परंपरा में गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञानोदय (निर्वाण) और महापरिनिर्वाण (निधन) का उत्सव है, जो हमें अहिंसा, करुणा, समता और आत्म-ज्ञान के उनके शाश्वत सिद्धांतों की याद दिलाता है, जो हर व्यक्ति के आंतरिक विकास और सामाजिक सद्भाव के लिए महत्वपूर्ण हैं, तथा यह अज्ञानता से मुक्ति और शांति की खोज का प्रतीक है।
भारतीय ज्ञान परंपरा में बुद्ध पूर्णिमा का महत्व:
- जीवन के तीन प्रमुख पड़ाव: यह पर्व बुद्ध के जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं – जन्म (लुम्बिनी), ज्ञान प्राप्ति (बोधगया) और महापरिनिर्वाण (कुशीनगर) – को एक ही दिन (वैशाख पूर्णिमा) मनाता है, जो उनके संपूर्ण आध्यात्मिक सफर को दर्शाता है।
- ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार: यह अज्ञान (अविद्या) से मुक्ति और सत्य के प्रकाश (ज्ञान) की प्राप्ति का प्रतीक है, जो भारतीय दर्शन के केंद्रीय लक्ष्यों में से एक है, और यह हर व्यक्ति को अपनी आध्यात्मिक यात्रा शुरू करने के लिए प्रेरित करता है।
- करुणा और समता का संदेश: बुद्ध की शिक्षाओं, जैसे सभी जीवों के प्रति दया, सहानुभूति और सामाजिक समानता, को यह दिन पुनर्जीवित करता है, जो भारतीय संस्कृति में प्रेम और सम्मान के मूल्यों को बढ़ावा देता है।
- व्यवहारिक नैतिकता: यह हमें व्यावहारिक नैतिकता, ध्यान, और जीवन में करुणा व सजगता के साथ जीने का मार्ग दिखाता है, जो भारतीय आध्यात्मिक परंपरा का एक अभिन्न अंग है।
- सार्वभौमिक उत्सव: यह सिर्फ बौद्धों का नहीं, बल्कि सभी धर्मों के लोगों के लिए एकता, समझ और शांति के मूल्यों का उत्सव है, जो भारत की समावेशी परंपरा को दर्शाता है।
संक्षेप में, बुद्ध पूर्णिमा भारतीय ज्ञान परंपरा के उस गहरे पक्ष को दर्शाती है जो आंतरिक शांति, सार्वभौमिक प्रेम और ज्ञानोदय के माध्यम से स्वयं और समाज के उत्थान पर केंद्रित है, जो आज भी प्रासंगिक है।भारतीय ज्ञान परंपरा में बुद्ध पूर्णिमा (वैशाख पूर्णिमा) का उद्देश्य भगवान बुद्ध के जीवन की तीन महत्वपूर्ण घटनाओं – जन्म, ज्ञान प्राप्ति (बोधि) और महापरिनिर्वाण – का स्मरण और उत्सव मनाना है, ताकि उनकी शिक्षाओं (अहिंसा, करुणा, मध्यम मार्ग, अष्टांगिक मार्ग) पर चिंतन कर दुखों से मुक्ति और आध्यात्मिक उत्थान प्राप्त किया जा सके। यह दिन हमें बुद्ध के दिखाए मार्ग पर चलकर प्रेम, शांति और आत्म-बोध की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है। मुख्य उद्देश्य
- त्रिविध-धन्य उत्सव (Triple Blessed Festival): यह दिन सिद्धार्थ गौतम के जन्म, बोधगया में ज्ञानोदय और कुशीनगर में परिनिर्वाण (मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र से अंतिम मुक्ति) का प्रतीक है, जिसे बौद्ध ‘त्रिविध-धन्य उत्सव’ कहते हैं।
- बुद्ध की शिक्षाओं का प्रसार: अहिंसा, करुणा, मध्यम मार्ग (अत्यधिक तपस्या और भोग से बचना), और चार आर्य सत्यों (दुःख, दुःख का कारण, दुःख का निवारण, और निवारण का मार्ग – अष्टांगिक मार्ग) पर जोर देना।
- आत्म-चिंतन और आध्यात्मिक विकास: अपने दैनिक जीवन में ध्यान, एकाग्रता और नैतिक सिद्धांतों को लागू करने का अवसर प्रदान करना, जिससे आंतरिक शांति और ज्ञान प्राप्त हो सके।
- सांस्कृतिक एकता: दुनिया भर के बौद्धों को एक साझा उद्देश्य के लिए एकजुट करना और उनकी साझा विरासत का उत्सव मनाना।
- मानवता और सद्भाव: सभी प्राणियों के प्रति प्रेम और करुणा के भाव को फैलाना, और प्राकृतिक दुनिया के साथ सद्भाव में रहना।